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पोर्तुगीज यूरोपियन प्रजा थी जिनका अकबर के साथ सांप्रदायिक और बिनसांप्रदायिक हेतु से संपर्क हुआ था | ई. 1561 में पोर्तुगीजों ने हिंद के पश्चिम तट का किला दक्षिण के सुलतान से छीन लिया और वहा की जगह को अच्छी तरह से अपने कबजे में ले लिया था | ई. 1573 में गुजरात मुगल साम्राज्य से जुड़ने से मुगलो और पोर्तुगीजों के बिच संघर्ष शुरू हुआ | पोर्तुगीजों सूरत से मक्का जाते मुस्लिमो को परेशान करते थे | उनको मेरी के चित्र वाले स्टेम्प लगा हुआ पासपोर्ट पोर्तुगीजों से ख़रीदना पड़ता था जो मुस्लिम के लिये कष्टदायक बात थी | थोड़े समय में मुगलो और पोर्तुगीजों के बिच युद्ध हुआ | जिसकी वजह ये थी की गुलबदन-बेगम ( अकबर की बुआ ) मक्का की हज के लिये निकली थी तब अकबर ने पोर्तुगीजों को खुश करने के लिये भेट के तौर पे वलसाड दिया |
यात्रा से वापस लौटने के बाद अकबर ने जो भेट के तौर पे हिस्सा दिया था वो वापस देने को कहा जिसको पोर्तुगीजों ने देने को अस्वीकार किया और दोनों के बिच दमण में युद्ध हुआ | जिसमे मुगलो की हार हुई और थोड़े वक्त के बाद पोर्तुगीजों ने मुगलो का एक जहाज कब्जे किया | अब अकबर ने पोर्तुगीजों को हिंद से निकालने का निर्धारित किया और इस हेतु के लिये पोर्तुगीजों की सेना का बल जानने के अपने मुग़ल दूत को गोवा में भेज दिया | ई. 1601 में अकबर ने खंभात से एक गुजराती को पादरी बेनिफिस्ट के साथ गोवा के गवर्नर पास मुगलदूत के रूप से भेजा गया | जिसके हिसाब से पोर्तुगीजों अधिकारी काबिल कारीगर मुग़ल दरबार भेजे और मूल्यवान व्यापारी वस्तु की खरीदी-बेचने के लिये मुगलो को सुविधा प्रदान करे |
पोर्तुगीजों अधिकारी ओ ने राजदूतों को अपने हथियार रखे थे वो जगह बतायी और तोप को फोड़ के अपने शक्ति दिखायी | जिसके बाद राजदूतों का राजकीय हेतु सफल नहीं हुआ और अकबर को हिंद से पोर्तुगीजों को निकालने की अच्छा भी अधूरी रही|
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