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सोमवार, 7 सितंबर 2020

अकबर और पोर्तुगीजों | Akbar and Portugese

 

Akbar and Portugese
Image Source - Google | Image by -Khurshid Alam

             पोर्तुगीज यूरोपियन  प्रजा  थी   जिनका  अकबर  के  साथ  सांप्रदायिक  और  बिनसांप्रदायिक  हेतु  से  संपर्क   हुआ  था |  ई. 1561  में  पोर्तुगीजों  ने  हिंद  के  पश्चिम  तट  का  किला  दक्षिण  के  सुलतान  से  छीन  लिया  और  वहा  की  जगह  को  अच्छी  तरह  से  अपने  कबजे  में  ले  लिया  था |  ई. 1573  में  गुजरात  मुगल साम्राज्य  से  जुड़ने  से  मुगलो  और  पोर्तुगीजों  के  बिच  संघर्ष  शुरू  हुआ |  पोर्तुगीजों  सूरत  से  मक्का  जाते  मुस्लिमो  को  परेशान  करते  थे  |  उनको  मेरी  के  चित्र वाले  स्टेम्प  लगा  हुआ  पासपोर्ट  पोर्तुगीजों  से  ख़रीदना  पड़ता  था  जो  मुस्लिम  के  लिये  कष्टदायक  बात  थी |  थोड़े  समय  में  मुगलो  और  पोर्तुगीजों  के  बिच  युद्ध  हुआ | जिसकी  वजह  ये  थी  की  गुलबदन-बेगम  ( अकबर की बुआ )  मक्का  की  हज  के  लिये  निकली  थी  तब  अकबर  ने  पोर्तुगीजों  को  खुश  करने  के  लिये  भेट  के  तौर  पे  वलसाड  दिया |
            यात्रा  से  वापस  लौटने  के  बाद  अकबर  ने  जो  भेट  के  तौर  पे  हिस्सा  दिया  था  वो  वापस  देने  को  कहा   जिसको   पोर्तुगीजों  ने  देने  को  अस्वीकार  किया  और  दोनों  के   बिच  दमण  में  युद्ध   हुआ |  जिसमे  मुगलो  की  हार  हुई   और  थोड़े  वक्त  के  बाद  पोर्तुगीजों  ने  मुगलो  का  एक  जहाज  कब्जे  किया  | अब अकबर  ने  पोर्तुगीजों को  हिंद  से  निकालने  का  निर्धारित  किया  और  इस  हेतु  के  लिये   पोर्तुगीजों  की  सेना  का  बल  जानने  के   अपने  मुग़ल दूत   को  गोवा  में  भेज  दिया  |  ई. 1601  में  अकबर  ने  खंभात  से  एक गुजराती  को  पादरी  बेनिफिस्ट  के  साथ  गोवा  के  गवर्नर  पास  मुगलदूत  के  रूप  से  भेजा  गया |   जिसके  हिसाब  से   पोर्तुगीजों  अधिकारी  काबिल  कारीगर  मुग़ल  दरबार  भेजे  और  मूल्यवान  व्यापारी  वस्तु  की  खरीदी-बेचने  के  लिये  मुगलो  को  सुविधा  प्रदान  करे | 
             पोर्तुगीजों  अधिकारी ओ  ने  राजदूतों  को  अपने  हथियार  रखे  थे  वो  जगह  बतायी  और  तोप  को  फोड़  के  अपने  शक्ति  दिखायी  |  जिसके  बाद  राजदूतों  का  राजकीय  हेतु  सफल  नहीं  हुआ  और  अकबर  को   हिंद  से  पोर्तुगीजों  को  निकालने  की  अच्छा  भी  अधूरी  रही| 
           






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